मेरा जन्मदिवस और आपको बधाई
आज मेरा जन्मदिवस है और इस अवसर पर मैं आपको बधाई देता हूँ. सुनकर अजीब लगा क्या? रूकिए, यह सुनकर आपको और अजीब लगेगा कि मैं आपको जन्मदिवस की नहीं बल्कि मृत्युदिवस की बधाइयाँ दे रहा हूँ, आपके मृत्युदिवस की.

आपको अजीब इसलिए लग रहा है क्योंकि अव्वल तो कोई किसी को मृत्युदिवस की बधाई देता नहीं. दूसरे, मैं आपको बधाई क्यों दे रहा हूँ क्योंकि अभी तो आप जीवित हैं? सबसे बड़ी बात, मृत्यु जैसी "अशुभ", "नकारात्मक", "डरावनी" चीज़ की भी बधाई कभी कोई देता है क्या?

वैसे, मृत्यु को नकारात्मक मानते ही सबसे पहली गड़बड़ शुरू हो जाती है, सबसे बड़ी नासमझी पैदा होती है. क्योंकि मृत्यु से बचा नहीं जा सकता; और जिससे बचा नहीं जा सकता, उससे ही पूरी ज़िंदगी बचने की कोशिश करते रहते हैं. इस उलझन में उस पर चिंतन करना भूल जाते हैं.

लेकिन, मृत्यु पर चिंतन करे भी कौन? इतनी हिम्मत कहाँ से आए? आती है हिम्मत ध्यान से. मुझे मिली. और मैंने मृत्यु को समझने का प्रयास किया. शांतभाव से उसे देखना शुरू किया. और महसूस किया कि मृत्यु कहीं दूर नहीं है, वह तो हर क्षण अंदर घट रही है. मैं हर क्षण मर ही रहा हूँ. तो पहली समझ तो यह पैदा हुई.

दूसरा यह समझ आया कि मृत्यु से भय का मुख्य कारण है कि जो कुछ मैं करना चाहता था वह मैं कर नहीं पा रहा था. उसे मैंने भविष्य में टाल के रखा हुआ था. जैसे कोई कला सीखनी थी, कोई किताब पढ़नी थी, कुछ खोज करनी थी, यह सब भविष्य में धकेल के रखा हुआ है. और वर्तमान को बर्बाद कर रहा था; निरर्थक, मूल्यहीन वस्तुओं में अपना जीवन खो रहा था. और ऐसा जीते- जीते अचानक मृत्यु दूर से भी गुज़रती, तू झकझोर देती.

लेकिन जब उसे अपने अंदर घटते देखा, तो एक त्वरा (intensity) पैदा हुई जीने की. अब, जो भविष्य में टाल कर रखा हुआ था, उसे खींचकर वर्तमान में लाने की, और उसे अभी और यहीं जीने की उत्कंठा (longing) उमड़ी. बस, जितना उसे जीता गया, उतना मृत्यु का भय मिटता गया.

दरअसल, मृत्यु का भय आत्म-तृप्ति में विलीन होता जाता है. आप जितने तृप्ति (fulfilment) में जीते हैं, उतने ठहरते हैं, शांत होते हैं. जब कुछ और जीने को बचा ही न हो, जब कुछ पाने को शेष ही न रहा हो, तो फिर मृत्यु से भय कैसा? फिर आप मृत्युदिवस की बधाई भी स्वयं को दे पाते हैं.

जन्मदिवस एक उपयुक्त क्षण है मृत्यु के प्रति जागरूक होने का. और इस जागरूकता से ही हम जीने का ढंग सीखते हैं. वह सब करने के लिए तैयार होते हैं जिससे हमारे जीवन में अर्थ पैदा हो, सुगंध पैदा हो, नृत्य पैदा हो.